भारतवर्ष की वैदिक परंपरा में “शास्त्र” एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की संपूर्ण पद्धति का मार्गदर्शन करने वाले दिव्य ग्रंथ हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि शास्त्र क्या हैं, इनके प्रकार, महत्व और आज के युग में इनकी प्रासंगिकता क्या है।
शास्त्र का अर्थ क्या है?
संस्कृत में “शास्” धातु का अर्थ होता है — शिक्षा देना, अनुशासन करना।
इससे बना “शास्त्र” — अर्थात् जो जीवन को सही दिशा में चलाने की विधि सिखाए।
शास्त्र = ज्ञान + अनुशासन + आचरण
शास्त्रों के मुख्य प्रकार
भारत में शास्त्रों को कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
1. वेद (Shruti)
चार वेद — ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, और अथर्ववेद। ये सबसे प्राचीन और दिव्य ग्रंथ हैं।
2. उपनिषद
वेदों के गूढ़ अर्थों की व्याख्या करते हैं। इनमें ब्रह्मज्ञान, आत्मा और मोक्ष का विवेचन है।
3. स्मृति ग्रंथ
मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति जैसे ग्रंथ जो सामाजिक नियम, धर्म, और न्याय पर आधारित हैं।
4. पुराण
18 महापुराण और उपपुराणों में भगवत कथाएं, अवतारों का वर्णन और जीवन की नैतिक शिक्षाएं दी गई हैं।
5. धर्मशास्त्र
न्याय, नीति, कर्तव्य और आचार संहिता को समझाने वाले ग्रंथ। जैसे — मनुस्मृति।
6. न्याय, वैशेषिक, योग, सांख्य, मीमांसा और वेदांत (षड्दर्शन)
ये भारतीय दर्शन की आधारशिला हैं।
शास्त्रों का उद्देश्य
- धर्म (कर्तव्य) का निर्धारण
- जीवन के चार पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) का मार्गदर्शन
- समाज में न्याय और संतुलन बनाए रखना
- आत्मा और परमात्मा के संबंध की व्याख्या करना
क्यों आवश्यक हैं शास्त्र?
“श्रुति: स्मृति: पुराणानि धर्मशास्त्राणि चैव हि।
आज्ञायं वै स धर्मः स्यादधर्मो विपरीतग:॥”
(महाभारत)
इस श्लोक के अनुसार वेद, स्मृति, पुराण और धर्मशास्त्र — यही धर्म के मूल आधार हैं।
आज के युग में जहां नैतिकता और मूल्यों का ह्रास हो रहा है, वहीं शास्त्र एक दिव्य प्रकाश स्तंभ की तरह हमें जीवन के सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
क्या शास्त्र आज भी प्रासंगिक हैं?
बिलकुल। यद्यपि समाज और तकनीक ने प्रगति की है, लेकिन मानवीय मूल्यों, कर्तव्यों और संतुलित जीवन के सिद्धांत आज भी वही हैं जो शास्त्रों ने सिखाए थे।
- परिवार में सामंजस्य
- समाज में न्याय
- आत्मिक शांति का मार्ग
— ये सब शास्त्रों से ही मिलते हैं।
निष्कर्ष
“शास्त्र” केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू को संतुलित और धर्मसंगत बनाने वाले मार्गदर्शक हैं।
यदि हम शास्त्रों को समझें और जीवन में उतारें, तो न केवल व्यक्ति बल्कि समाज और राष्ट्र भी उज्ज्वल दिशा में अग्रसर हो सकता है।