🌿 भूमिका
सनातन धर्म न केवल एक पंथ है, बल्कि यह जीवन जीने की चिरंतन व्यवस्था है।
इस धर्म में जीवन के हर पहलू—धर्म, अधर्म, और संन्यास—का स्पष्ट दर्शन है, जो व्यक्ति को आत्म-कल्याण और मोक्ष की ओर ले जाता है।
आज के भ्रमित युग में इन तीनों की सही परिभाषा और अर्थ जानना अत्यंत आवश्यक है।
आइए, सनातन दृष्टिकोण से इनकी गहराई में प्रवेश करें।
🕊️ धर्म: जीवन का प्राकृतिक मार्ग
धर्म का शाब्दिक अर्थ है — जो धारण किया जाए।
सनातन धर्म में धर्म को केवल पूजा-पाठ या रीति-रिवाज नहीं माना गया, बल्कि इसे कर्तव्य, सत्य, करुणा और संतुलन के रूप में देखा गया है।
📖 “धारणात धर्मः” — जो समाज और आत्मा का संतुलन बनाए, वही धर्म है।
धर्म के स्तंभ:
- सत्य (सच्चाई बोलना)
- अहिंसा (किसी को मानसिक या शारीरिक कष्ट न देना)
- अस्तेय (चोरी न करना)
- शौच (शारीरिक और मानसिक पवित्रता)
- इंद्रिय-निग्रह (इच्छाओं पर संयम)
👉 सनातन मत में धर्म का अर्थ है – कर्तव्य का पालन, चाहे वह एक गृहस्थ का हो, एक ब्राह्मण का, या एक राजा का।
🔥 अधर्म: जो सत्य के विपरीत हो
अधर्म वह है जो स्वधर्म, न्याय और आत्मा की आवाज के विरुद्ध हो।
अधर्म के लक्षण:
- अहंकार में किया गया कर्म
- स्वार्थ के लिए नियमों का उल्लंघन
- दूसरों को दुख पहुँचाना
- लोभ, मोह, और द्वेष की प्रवृत्तियाँ
🕉️ “यतो धर्मस्ततो जयः” — जहाँ धर्म है, वहीं विजय है।
महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म के बीच का प्रतीकात्मक संघर्ष था।
कुरुक्षेत्र की लड़ाई आज भी हमारे भीतर चलती है – धर्म और अधर्म के बीच।
🧘♂️ संन्यास: त्याग नहीं, आत्म-समर्पण
बहुतों के लिए संन्यास का अर्थ है – संसार छोड़ना।
परंतु सनातन दृष्टिकोण में संन्यास का वास्तविक अर्थ है:
“फल की इच्छा का त्याग, और आत्मा की खोज।”
संन्यास के प्रकार:
- कर्म संन्यास – कर्म से नहीं, उसके फल से विरक्ति
- ज्ञान संन्यास – आत्म-ज्ञान से मोह-माया का अंत
- वैराग्य संन्यास – भीतर से संन्यस्त, बाहर से कर्मयोगी
👉 भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:
“न कर्म त्याज्यं” – कर्म मत छोड़ो, कर्म की आसक्ति छोड़ो।
🔍 धर्म, अधर्म और संन्यास का संबंध
- धर्म = कर्तव्य में स्थित बुद्धि
- अधर्म = स्वार्थ और मोह में डूबा कर्म
- संन्यास = धर्म के गूढ़ स्वरूप का अनुभव
एक सच्चा संन्यासी धर्म में लीन होता है, अधर्म से विरत होता है और कर्म करता है बिना फल की आकांक्षा के।
🌼 निष्कर्ष
धर्म, अधर्म और संन्यास — ये तीनों केवल ग्रंथों के विषय नहीं हैं, बल्कि हर व्यक्ति के जीवन के तीन मार्गदर्शक हैं।
जो इनका संतुलन साध लेता है, वही मोक्ष और सच्चे आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है।
🪔 “धर्म ही जीवन है, अधर्म से विनाश, और संन्यास से मुक्ति।”